गौरवं प्राप्यते दानात्, न तु वित्तस्य सञ्चयात् । त्यागाज्जगति पूज्यन्ते, पशुपाषाणपादपाः ॥

Samvardhini

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  • Baroda Sanskrit Mahavidyalay The Maharaja Sayajirao University of Baroda Vadodara

योगक्षेम-विमर्श

Author : Dr. Meera Dubey
Volume : 5
Issue : 2

योगक्षेम भारतीय ज्ञान परम्परा का वह प्रबन्धन है । जिसे इन्द्रियजय विनय और विद्या आदि उपकरणो से सुसज्जित होकर अपने कुटुंब-समाज तथा देश के प्रति उत्तरदायित्व एवं लोक-कल्याण की भावना का विकास सुरक्षित है । योगक्षेम ‘कर्म’ के उस वैज्ञानिक दृष्टिकोण को परिभाषित करता है । जिसमें भारतीय परम्परा का सार प्रदर्शित होता है ।