न दानेन विना यशः ।

Samvardhini

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आचार्यस्य परिचयः

Author : Shiv Narayan Shastri
Volume : 4
Issue : 2

आचार्यस्य परिचयः

ॠग्वेद-संहिता में भाषा-दर्शन

Author : Shiv Narayan Shastri
Volume : 4
Issue : 2

ॠग्वेद-संहिता विषय की दृष्टि से स्तुति-साहित्य है । अतः भाषा-चिन्तन इस का प्रति-पाद्य नहीं है । परन्तु साहित्य की यह एक विशेषता होती है कि यह उन बहुत-सी अन-कही कहानियों को भी कह देता है, जिन्हें कहना शायद वक्‍ता ने भी आवश्यक नहीं समझा हो । भाषा-चिन्तन भी उन्हीं अन-कही कहानियों में से एक है ।

ऋग्वेद-संहिता, प्रथमाष्टक के प्रथम अध्याय की छन्दोमीमाँसा

Author : Shiv Narayan Shastri
Volume : 4
Issue : 2

इस निबन्ध मेँ ऋग्वेदसंहिता के प्रथम अष्टक के अष्टाक्षर गायत्री मेँ निबद्ध १७ और अनुष्टुप छन्द मेँ निबद्ध २ सूक्तों के कुल १९४ मन्त्रों की समीक्षा अक्षरपरिणाह की दृष्टि से की गई है । इस के अतिरिक्त वैश्वामित्र मधुच्छन्दस् के एकमात्र और सूक्त (९.१ ) के दस मन्त्रों की मीमांसा भी इससे उनका अध्ययन पूरा हो जाने की दृष्टि से की गई है।

निरुक्त-शास्त्र के उद्भव की पृष्ठभूमि

Author : Shiv Narayan Shastri
Volume : 5
Issue : 1

भाषा, अग्नि और चक्र (चक्का, पहिया) ये तीन वस्तुएँ मनुष्य की अनवरत प्रवृत्त जीवनयात्रा के लिए सर्वाधिक उपयोगी उपकरण सिद्ध हुए हैं । इन तीनों में सर्वाधिक प्राचीन एवं महत्त्वपूर्ण उपकरण है भाषा । अग्नि दैवी वस्तु है, पर उसका उपयोग मनुष्य के हित में स्वेच्छया किया जा सकता है, यह रहस्य भेदन पूर्णतः मनुष्य की अपनी कृति है । चक्र के तो आविर्भाव का पूरा ही श्रेय मनुष्य को प्राप्त है । परन्तु भाषा इस प्रकार आधे रूप में या पूर्ण रूप में मनुष्य का अपने बलबूते से किया आविष्कार नहीं है ।

निर्वचन और निरुक्त शब्दों का इतिहास

Author : Shiv Narayan Shastri
Volume : 5
Issue : 1

जैसा कि आपाततः स्पष्ट प्रतीत होता है निर्वचन और निरुक्त शब्द निर् + वच् से व्युत्पन्न हैं । निर्वचन के अर्थ पर श्रीमद् दुर्गसिंह का कहना है कि परोक्षवृत्ति या अतिपरोक्षवृत्ति शब्द में छुपे हुए अर्थ को निकाल करके, अर्थात् शब्द के सब अवयवों को अलग-अलग करके, कहना निर्वचन कहलाता है । यह तो है यौगिक अर्थ । निर्वचन और निरुक्त शब्द योगरूढ हैं । अर्थात् इनसे केवल छुपे हुए अर्थ को निकालकर कहने का ही भाव नहीं प्रकट होता, अपितु इस प्रकार कहने वाला शास्त्र अर्थ प्रकट होता है । ये दोनों शब्द कब से इस विशिष्ट अर्थ में रूढ हुए ?